Narkatia Muslim Vote: बिहार के पूर्वी चंपारण जिले की नरकटिया विधानसभा सीट चर्चा में है, क्योंकि इस सीट पर मुसलमानों का दबदबा है. मुस्लिम वोटर्स किसी भी पार्टी की जीत-हार तय करते हैं. साफ शब्दों में कहें तो मुसलमान वोटर्स इस सीट पर किंगमेकर की भूमिका में हैं. 2025 के विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, सियासी दलों की नजर इस सीट पर मजबूती से टिकी है. AIMIM भी इस सीट से महागठबंधन और NDA को चुनावी मैदान में टक्कर देने के लिए तैयार है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के इस दावेदारी के बाद यह सीट बिहार में हॉट सीट बन गई है.
दरअसल, नरकटिया विधानसभा में मुसलमानों की आबादी लगभग 26.80 फीसद है. इस सीट पर लगभग 77,170 मुसलमान हैं. लोकसभा इलेक्शन 2024 तक यहां 3,01,604 मतदाता हैं. इनमें मुस्लिम मतदाताओं की सबसे बड़ी आबादी है, और ये मतदाता कई पंचायतों और बूथों पर चुनावी समीकरण को सीधे तौर पर बदल सकते हैं. माना जाता है कि मुसलमान शुरू से लेकर अब तक महागठबंधन और सेक्यूलर पार्टियों को वोट देते रहे हैं. साल 2015 और 2020 में शमीम अहमद की जीत में इस समुदाय की बड़ी भूमिका मानी जाती है. वहीं, शमीम अहमद महागठबंधन की नीतीश सरकार में कानून मंत्री और गन्ना मंत्री भी रह चुके हैं. शमीम अहमद का प्रभाव अभी भी क्षेत्र में बरकरार है.
नरकटिया विधानसभा सीट की शुरुआत साल 2008 में हुए परिसीमन के बाद हुई थी. इससे पहले यह सीट अस्तित्व में नहीं थी. यहां पहली बार साल 2010 में विधानसभा चुनाव हुए थे. पहले चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (JDU) के श्याम बिहारी प्रसाद जीते और नरकटिया के पहले विधायक बने. इसके बाद 2015 के चुनाव में यह सीट राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के खाते में चली गई. चूंकि साल 2015 में राजद और जदयू का गठबंधन था. इस बार शमीम अहमद चुनाव जीतकर विधायक बने.
मुस्लिम विधायक का जलवा है बरकरार
शमीम अहमद ने 2020 में फिर से जीत हासिल की और अपनी सीट बरकरार रखी. साल 2020 के चुनाव में शमीम अहमद को 85,562 वोट मिले, जबकि लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को सिर्फ 20,494 वोट मिले. शमीम अहमद 27,191 वोटों से जीते. इस चुनाव में लोजपा के अलग लड़ने के कारण एनडीए के वोट बंट गए और जदयू उम्मीदवार बुरी तरह हार गया.
AIMIM बिगाड़ेगी महागठबंधन का खेल!
अब इस सीट पर AIMIM की नजर हैं. अगर इस सीट पर हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी चुनाव लड़ती है, तो महागठबंधन के कैंडिडेट को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि अब तक मुस्लिम वोट बैंक काफी हद तक राजद के साथ रहा है, लेकिन अगर NDA खासकर भाजपा-जदयू-लोजपा गठबंधन मजबूती से मैदान में उतरता है और किसी स्थानीय प्रभावशाली मुस्लिम चेहरे को मैदान में उतारता है, तो समीकरण बदल सकते हैं.