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New Criminal Laws: देश में तीन नए आपराधिक कानून लागू, जानिए 10 मुख्य पॉइंट्स

New Criminal Laws: भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम पुराने भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे. पूरी खबर पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें.

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New Criminal Laws: देश में तीन नए आपराधिक कानून लागू, जानिए 10 मुख्य पॉइंट्स
Tauseef Alam|Updated: Jul 01, 2024, 08:03 AM IST
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New Criminal Laws: देश में आज यानी 1 जुलाई से तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं, जो भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव लाएंगे और औपनिवेशिक युग के कानूनों की जगह लेंगे. भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम पुराने भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे. आइए जानते हैं.

जानिए 10 मुख्य पॉइंट्स, जिनमें हुआ बदलाव

1. आपराधिक मामले का फैसला सुनवाई खत्म होने के 45 दिनों के भीतर सुनाया जाना चाहिए. पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर इल्जाम तय किए जाने चाहिए. सभी राज्य सरकारों को गवाहों की सुरक्षा और सहयोग सुनिश्चित करने के लिए गवाह सुरक्षा योजनाओं को लागू करना चाहिए.

2. बलात्कार पीड़ितों के बयान पीड़िता के अभिभावक या रिश्तेदार की मौजूदगी में एक महिला पुलिस अधिकारी के जरिए मामला दर्ज किए जाएंगे. मेडिकल रिपोर्ट 7 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए.

3. कानून में एक नया अध्याय महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को संबोधित करता है. बच्चे को खरीदना या बेचना एक जघन्य अपराध के रूप में शामिल किया गया है. जिसके लिए कड़ी सजा हो सकती है. नाबालिग के साथ गैंगरेप के लिए मौत की सजा या आजीवन कारावास हो सकता है.

4. कानून में अब उन मामलों के लिए दंड शामिल हैं, जहां शादी के झूठे वादों के जरिए महिलाओं को गुमराह करके छोड़ दिया जाता है.

5. महिलाओं के खिलाफ अपराध के पीड़ितों को 90 दिनों के भीतर अपने मामलों पर नियमित अपडेट प्राप्त करने का अधिकार है. सभी अस्पतालों को महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध के पीड़ितों को मुफ्त प्राथमिक इलाज या चिकित्सा इलाज करना जरूरी है.

6. मुल्जिम और पीड़ित दोनों को 14 दिनों के भीतर मुकदमा, पुलिस रिपोर्ट, चार्जशीट, बयान, कबूलनामे और दूसरे दस्तावेजों की कॉपी लेने का अधिकार है. मामले की सुनवाई में अनावश्यक देरी से बचने के लिए कोर्ट को अधिकतम दो स्थगन की इजाजत है.

7. अब घटनाओं की रिपोर्ट इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से की जा सकती है, जिससे पुलिस स्टेशन जाने की आवश्यकता खत्म हो जाएगी. जीरो एफआईआर की शुरूआत से व्यक्ति किसी भी पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज कर सकता है, चाहे उसका क्षेत्राधिकार कुछ भी हो.

8. गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में अपनी पसंद के व्यक्ति को सूचित करने का अधिकार है, ताकि उसे तत्काल सहायता मिल सके. गिरफ्तारी की जानकारी पुलिस स्टेशनों और जिला मुख्यालयों में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाएगा ताकि परिवार और मित्र आसानी से इसे देख सकें.

9. अब गंभीर अपराधों के लिए फोरेंसिक विशेषज्ञों का घटनास्थल पर जाना और साक्ष्य एकत्र करना अनिवार्य है.

10. "लिंग" की परिभाषा में अब ट्रांसजेंडर लोग भी शामिल हैं. महिलाओं के खिलाफ कुछ अपराधों के लिए, जब भी संभव हो, पीड़िता के बयान महिला मजिस्ट्रेट के जरिए दर्ज किए जाने चाहिए. अगर उपलब्ध न हो, तो मर्द मजिस्ट्रेट को महिला की मौजूदगी में बयान दर्ज करना चाहिए. रेप से संबंधित बयान ऑडियो-वीडियो माध्यम से दर्ज किए जाने चाहिए.

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