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AIMIM उमीदवार ताहिर हुसैन को चुनाव प्रचार के लिए 14.82 लाख में मिली जेल से 72 घंटे की आज़ादी!

Tahir Hussain Bail: ताहिर हुसैन को हिरासत में चुनाव प्रचार करने की इजाजत मिल चुकी है. वह दिल्ली के मुस्तफाबाद से चुनाव लड़ रहे हैं. इससे पहले उन्हें इसलिए जमानत नहीं मिल पाई थी कि दो जजों की इस पर राय बंटी थी.

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AIMIM उमीदवार ताहिर हुसैन को चुनाव प्रचार के लिए 14.82 लाख में मिली जेल से 72 घंटे की आज़ादी!
Siraj Mahi|Updated: Jan 28, 2025, 06:43 PM IST
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Tahir Hussain Bail: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद और फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के मुल्जिम ताहिर हुसैन को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के टिकट पर दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए हिरासत में पैरोल दे दी. जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की तीन जजों की बेंच ने 29 जनवरी से 3 फरवरी तक पुलिस हिरासत में प्रचार करने की हुसैन की अर्जी को मंजूरी दे दी. 

कई शर्तों पर मिली जमानत
कई शर्तें लगाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हुसैन को केवल दिन के वक्त सुरक्षा के साथ जेल से बाहर जाने और हर रात वापस आने की इजाजत होगी. बेंच ने कहा कि हुसैन की हिरासत पैरोल सुरक्षा खर्च के हिस्से के तौर पर हर दिन 2.47 लाख रुपये जमा करने के अधीन होगी. हुसैन की ओर से पेश सीनियर वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने दलील दी थी कि चुनाव प्रचार के लिए केवल चार-पांच दिन बचे हैं और कहा, "जिस मकाम पर मेरा घर होने का इल्जाम है, वहीं दिल्ली दंगे हुए थे. मैं मुस्तफाबाद सीट से चुनाव लड़ रहा हूं और रहने के लिए भी मैं कह रहा हूं कि मैं घर नहीं जाऊंगा और होटल में रहूंगा और जानकारी दूंगा." 

ताहिर का किरदार है संगीन
अतिरिक्त महाधिवक्ता एसवी राजू ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि दंगों में उनका किरदार संगीन है. राजू ने कहा कि अगर राहत दी जाती है, तो हर कोई जेल में नामांकन पत्र भरेगा. अदालत ने राजू से कहा कि वह इस बारे में निर्देश मांगें कि किस तरह के खर्च और सुरक्षा की जरूरत होगी और अग्रवाल से कहा कि वह हुसैन की तरफ से दिए जाने वाले वचनों के बारे में सूचित करें. 

अलग-अलग सुनाया था फैसला
यह आदेश हुसैन की अर्जी पर दिया गया था, जिसमें उन्हें आने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए हिरासत में प्रचार करने की इजाजत देने की मांग की गई थी. पूर्व पार्षद 22 जनवरी को अंतरिम जमानत हासिल करने में नाकाम रहे. इसकी वजह ये थी कि सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फैसला सुनाया था.

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