Thakurganj Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं. हर पार्टी अपने उम्मीदवार और रणनीति को लेकर मंथन में जुटी है. इसी बीच, किशनगंज जिले की ठाकुरगंज विधानसभा सीट पर भी सबकी नज़रें टिकी हैं. चुनावी लिहाज़ से यह सीट हमेशा से ही काफ़ी अहम मानी जाती रही है. आइए जानते हैं यहां के चुनावी फ़ैक्टर क्या कहते हैं.
ठाकुरगंज विधानसभा सीट किशनगंज लोकसभा क्षेत्र की 6 विधानसभा सीटों में से एक है और नेपाल सीमा से भी सटी हुई है. इस सीट का चुनावी इतिहास बेहद दिलचस्प है, क्योंकि यहां किसी भी पार्टी का स्थायी दबदबा नहीं रहा है. स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ मुस्लिम वोट बैंक की भूमिका हमेशा निर्णायक रही है. यही वजह है कि ठाकुरगंज हर चुनाव में नए समीकरणों और रणनीतियों का गवाह बनता है.
ठाकुरगंज सीट का राजनीतिक इतिहास
यह सीट कभी राजद, कांग्रेस और जदयू के पास रही है. साल 1977 में कांग्रेस के डॉ. मोहम्मद जावेद, 2005 में सपा के गोपाल कुमार अग्रवाल, 2010 में लोजपा के नौशाद आलम और 2015 में जदयू के नौशाद आलम ने इस विधानसभा सीट पर जीत हासिल की थी. हालांकि, साल 2020 में राजद के सऊद आलम ने यह सीट जीती और उनके समर्थन में मुस्लिम वोटों ने अहम भूमिका निभाई थी. इस सीट पर मुसलमान ही हार-जीत का फैसला करते हैं. इस सीट पर जातीय समीकरण के साथ-साथ मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण भी हर चुनाव में अहम साबित होता है.
ठाकुरगंज पर सबकी नजर
साल 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद के उम्मीदवार सऊद आलम ने 79,354 वोटों से जीत हासिल की थी. वहीं, 2025 के विधानसभा इलेक्शन इलेक्शन की बात करें तो लोजपा, जदयू, बीजेपी और राजद-कांग्रेस गठबंधन के बीच कड़ी टक्कर होने की संभावना है. ठाकुरगंज के मतदाता अब सिर्फ़ जातिवाद और मजहब के आधार पर ही नहीं, बल्कि विकास के मुद्दों पर भी सोच रहे हैं.
ऐसे बदल जाएंगे नतीजे
ठाकुरगंज में हर इलेक्शन में मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण अहम होता है. एनडीए और महागठबंधन, दोनों ही मुस्लिम वोट बैंक को अपनी ओर खींचने की पूरी कोशिश करेंगे. अगर मुस्लिम वोट एकजुट रहे, तो राजद या महागठबंधन को फ़ायदा हो सकता है लेकिन अगर बीजेपी और जदयू मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने में कामयाब हो गए, तो नतीजे बदल सकते हैं.