Waqf Amendment Act in Supreme Court: संशोधित वक्फ कानून पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में पांचवें दिन सुनवाई हुई. सरकार की तरफ से सोलिसिटर जेनरल तुषार मेहता ने अपना पक्ष रखा और वक्फ कानून को चुनौती देने वाले पक्ष की तरफ से वकील कपिल सिबल ने दलील पेश की. आज की सुनवाई पूरी हो चुकी है, कल फिर इस मुक़दमे में सुनवाई होगी. पहले पहले ये केस तीन जजों की संविधान पीठ के पास था, लेकिन आज इसे दो जजों की बेंच के हवाले कर दिया गया है, जिसमें चीफ जस्टिस BR गवई, और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं.
सरकार की दलील
क़ानून के अमल पर रोक नहीं लगनी चाहिए
बहस के दौरान केंद्र सरकार के वकील तुषार मेहता ने अदालत से कहा, "इस क़ानून के अमल पर रोक नहीं लगनी चाहिए. संसद ने सोच समझकर इस कानून को बनाया है. इस कानून पर रोक जैसा अदालत का कोई भी देश इस कानून के मकसद को नाकाम कर देगा. यह उन लोगों को छूट देना होगा जो सैकड़ो सालो से वक़्फ के रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता होने के बावजूद इस कानून की जानबूझकर खिलाफवर्जी कर रहे हैं."
सरकारी संपत्ति पर किसी को अपना कब्जा जमाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती
तुषार मेहता ने कहा, "बड़ी तादाद में सरकारी और लोगों की निजी संपत्तियों को वक़्फ की सम्पत्ति बताकर कब्जा किया जाता रहा है. पुरानी सरकार के वक़्त चूंकि कानून में कोई सेफगार्ड नहीं थे, लिहाजा इस क़ानून का बहुत ज्यादा बेजा इस्तेमाल किया गया है. तुषार मेहता ने कहा कि सरकारी संपत्ति पर किसी को अपना कब्जा जमाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती है. ऐसी ज़मीन का मालिक पूरा मुल्क है. सरकार को इस बात का हक़ है कि वो जांच करे कि कोई संपत्ति सरकार की है या नहीं? सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वो सार्वजनिक ज़मीन पर कब्जा न होने दे."
रजिस्ट्रेशन के अनिवार्यता का बचाव
तुषार मेहता ने कहा कि 1923, 1954, 1995 में कानून में भी हमेशा से वक़्फ की जायदाद के रजिस्ट्रेशन का नियम रहा है. इस मामले में न सिर्फ मुतवल्ली बल्कि, कोई भी रजिस्ट्रेशन करा सकता है. रजिस्ट्रेशन के लिए कोई रजिस्ट्रेशन डीड जैसे दस्तावेज की ज़रूरत नहीं रही है.
ग़ैर-मुस्लिम को वक्फ के अधिकार पर सरकार का सवाल
तुषार मेहता ने आगे दलील देते हुए कहा कि साल 2013 से पहले सिर्फ एक मुस्लिम ही अपनी संपत्ति वक़्फ लर सकता था. लेकिन 2013 में चुनाव से पहले इसमे बदलाव किया गया और ग़ैर-मुस्लिम को भी यह अधिकार दे दिया गया.
प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होने की शर्त का बचाव
तुषार मेहता ने नए संशोधित कानून में जायदाद वक्फ करने के लिए 5 साल तक प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होने की शर्त का बचाव करते हुए अपनी दलील में कहा कि 5 साल तक इस्लाम की प्रैक्टिस रखने की शर्त का मतलब यह नहीं है कि सरकार चाहती है कि वक्फ करने वाल इंसान 5 बार नमाज पढ़ रहा है या शराब न पीता हो. यह शर्त सिर्फ इसलिए रखी गई है ताकि धर्मांतरण के ज़रिए इस क़ानून का गलत इस्तेमाल न हो, क्यूंकि इस्लाम धर्म मे धर्मांतरण का पहले से ग़लत इस्तेमाल होता रहा है. मेहता ने कहा कि यहां तक कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी इसे लेकर अपनी चिंता जाहिर की है.
कमिश्नर की जांच से संतुष्ठ नहीं है, तो वक़्फ़ ट्रिब्यूनल जा सकता है
तुषार मेहता ने कहा कि इस केस में याचिकाकर्ता कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश कर रहे है कि नए कानून के सेक्शन 3 के तहत कमिश्नर की जांच फाइनल होगी. ये सही नहीं है. अगर कोई पक्ष कमिश्नर की जांच से संतुष्ठ नहीं है, तो वक़्फ़ ट्रिब्यूनल जा सकता है. जब तक पूरी न्यायिक प्रकिया पूरी नहीं हो जाती तब तक वक़्फ़ की उस संपत्ति से बेदखली नहीं होगी.
यह एक क़ौम की रूह है
सरकारी वकील के काउंटर में दलील देते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि वक़्फ़ कोई टेक्निकल मामला नहीं है , बल्कि यह एक क़ौम की रूह है,
और उस रूह की हिफाज़त की जिमीदारी संविधान करता है न कि जिले का कोई कलेक्टर ? इसी तरह मुतवल्ली की अहमियत पर जोर देते हुए कपिल सिबल ने कह कि अगर मुतवल्ली की रज़ामंदी के बिना वक़्फ़ का रजिस्ट्रेशन किया गया, तो उस जायदाद का धार्मिक चरित्र ही बदल जाएगा. Waqf by User प्रावधान को भी कपिल सिबल ने इतिहास से मिटाने की साज़िश बताते हुए कहा कि 100 साल से कब्रिस्तान है, पर काग़ज़ नहीं है, तो क्या मुर्दों की हैसियत अब कलेक्टर तय करेगा?
'वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं'
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक्फ संशोधन विधेयक के विरोध पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि विरोध के नाम पर झूठी और काल्पनिक कहानियां गढ़ी जा रही हैं, जैसे कि सभी वक्फ दस्तावेज जबरन मांगे जाएंगे या सामूहिक कब्जे की स्थिति बन जाएगी. उन्होंने कहा कि कि वक्फ कोई मौलिक अधिकार नहीं है, बल्कि यह एक वैधानिक व्यवस्था है जिसे कानून के जरिए मान्यता दी गई है.
तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि वक्फ एक इस्लामी परंपरा है, लेकिन यह इस्लाम का कोई अनिवार्य हिस्सा नहीं है. उन्होंने कहा कि दान सभी धर्मों में होता है. ईसाई, हिंदू और सिख धर्म में भी इसकी परंपरा है. वक्फ इसी प्रकार का दान है और वक्फ बोर्ड का काम धार्मिक नहीं बल्कि प्रशासनिक है जैसे संपत्ति प्रबंधन, लेखा-जोखा और ऑडिट.
गैर-मुस्लिम की नियुक्ति से नहीं पड़ेगा असर
सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति से धार्मिक मामलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. जैसे हिंदू मंदिरों में भी सरकार बंदोबस्ती से संबंधित फैसले लेती है, वैसे ही वक्फ संपत्तियों का प्रशासन भी कानून के तहत होना चाहिए. धर्मनिरपेक्ष कामों पर नियंत्रण संवैधानिक रूप से उचित है.
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