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Muslim Nikaah: क्या होता है नान, नफ्का और सुकना जिसकी निकाह में दूल्हे से शपथ दिलाते हैं क़ाज़ी

Muslim Nikaah: मुस्लिम शादियां या निकाह बेहद आसान होती है. सिर्फ तीन शर्तें को पूरा करते हुए दो मिनट से भी कम वक़्त में शादी या निकाह का अमल पूरा हो जाता है. कई बार निकाह के वक़्त मौलवी या क़ाज़ी दूल्हे या लड़के से नान, नफ्का और सुकना की शपथ दिलाते हैं, जिसे ज़्यादातर लोग नहीं समझते हैं.  आज हम आपको बता रहे हैं कि आखिर ये नान, नफ्का और सुकना क्या होता है? 
 

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अलामती तस्वीर,  Photo credit: Youtube
अलामती तस्वीर, Photo credit: Youtube
Dr. Hussain Tabish|Updated: Jun 25, 2025, 05:44 PM IST
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Muslim Nikaah: मुस्लिम शादियों या निकाह में अक्सर काजी या मौलाना निकाह पढ़ाते वक़्त दूल्हे से नान, नफ्का और सुकना का वचन लेते हैं, जिसे बहुत से लोग नहीं समझते हैं. ज़्यादातर लड़के/ दूल्हे इसे  बिना समझे और जाने कबूल कर लेते हैं. आखिर ये नान, नफ्का और सुकना क्या होता है?  

इस्लाम में शादी को सात जन्मों या जन्म जन्मांत्रण का बंधन न मानकर एक सोशल कॉन्ट्रैक्ट माना गया है, जो दोनों पक्षों की आपसी रजामंदी रहने तक चलती रहेगी. हिन्दू धर्म की तरह लड़के-लड़की के बीच कुंडली वगैरह मिलाने या एक ही गोत्र में शादी न होने जैसी यहाँ कोई पाबन्दी नहीं है. जिस रिश्ते में शादी जायज़ है, और जिसमें हराम है, सब का जिक्र कुरआन और हदीस में कर दिया गया है. शादी में जो सबसे ज़रूरी चीज़ है, वो लड़के और लड़की की आपसी रजामंदी है. यहाँ शादी को बेहद आसान बनाया गया है. निकाह की रस्म सिर्फ दो मिनट में पूरी हो जाती है. शादी के लिए घंटों इंतज़ार नहीं करना होता है. 

इस्लाम में निकाह के लिए सिर्फ 3  चीज़ें ज़रूरी या शर्तें रखी गई है. पहली है लड़के या लड़की की शादी के लिए आपसी रजामंदी होना. यानी वो किसी दवाब, बहकावे या डर की वजह से शादी के लिए हामी नहीं भर रहे हों. निकाह के वक़्त कबूल है कहने में वो पूरी तरह होश- ओ- हवास में हों.  इस्लाम में जबरन की शादियाँ अवैध मानी जाती है. हालाँकि, जब नाबालिगों का निकाह होता था तो दोनों पक्ष के गार्डियन की सहमति भी एक ज़रूरी शर्त मानी जाती थी. मुस्लिम शादियों का दूसरा शर्त निकाह के पहले एक निश्चित रकम मेहर के तौर पर तय किया जाना, जिसे निकाह के बाद दुल्हे को वो रकम दुलहन को देनी होती है. तीसरी शर्त है, निकाह के लिए दो गवाहों का होना है, जिसकी मौजूदगी में निकाह किया जा रहा हो.  यहाँ शादी या निकाह के लिए कोई पुरोहित, पंडित, काजी या मौलवी का होना भी ज़रूरी नहीं है. ये काम कोई भी आम आदमी करा सकता है. 

यहाँ हिन्दू विवाह की तरह दुल्हे- दुलहन को कोई सात वचन तो नहीं दिलाया जाता है, लेकिन उसे 3 वचन लिया जाता है. हालांकि, ये निकाह का ज़रूरी हिस्सा नहीं है. कुछ काजी इसे निकाह के वक़्त लड़के से पूछते हैं, तो कुछ नहीं पूछते हैं.

ये तीन वचन होते हैं, नान, नफ्का और सुकना. ये तीनों उर्दू के शब्द हैं. यहाँ नान का मतलब रोटी से है, जबकि नफ्का का मतलब भी रोटी- कपड़ा या बीवी की दीगर ज़रूरयात से लगाया जाता है. सुकना का मतलब छत यानी घर से है.  इसका मतलब ठहरना, रुकना, रहना भी होता है. स्थाई तौर पर रहने की जगह या बसने में भी इसका इस्तेमाल होता है.

इस लिहाज से मोटे तौर पर शादी के बाद लड़की/ दुल्हन के रोटी, कपड़ा और मकान की जिम्मेदारी उठाना लड़के/ दूल्हे की जिम्मेदारी होगी. कुछ काजी मानते हैं कि ये तो निकाह या शादी के बाद एक तय जिम्मेदारी होती है, जिसे लड़के को पूरी करनी ही है. इसलिए इसके लिए अलग से निकाह में करार करना या शपथ दिलाना कोई ज़रूरी अमल नहीं है. निकाह के दौरान काजी या इमाम मेहर की रकम को सिक्का -ए -राइज-उल-वक्त में मापते हैं. ये भी एक उर्दू शब्द है, जिसका मतलब होता है  "वर्तमान समय में प्रचलित" या जो ज़माना के ऐतबार से मान्य मुद्रा हो. जैसे काजी कहते हों कि मेहर के तौर पर सिक्का -ए -राइज-उल-वक्त 50 हज़ार रुपया इसका मतलब है कि हिन्दुस्तान की प्रचलित मुद्रा के मुताबिक 50 हज़ार रुपया. ये इसलिए भी साफ़ कर दिया जाता है कि अगर निकाह के बात दूल्हा-दुलहन अमेरिका चले गए तो लड़की वहां 50 हज़ार रुपये के बदले 50 हज़ार डॉलर न मांग ले!     

मुस्लिम शादियों में निकाह के बाद काजी या मौलाना खुतबा पढ़ते हैं, जिसे सिर्फ एक सुन्नत माना गया है. ये निकाह या शादी का कोई अनिवार्य अमल नहीं है.  

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