ऊपर की तस्वीर शायद आपको याद होगी. मार्च 2020 में इस समूह को भारत में कोविड फैलाने का अकेले दोषी मान लिया गया था. विदेशों से आये और देशी तबलीगी जमात के कुछ लोग अचानक लगने वाले लॉकडाउन में दिल्ली या अन्य शहरों में फंस गए थे. विदेशी पर्यटक और देशी हिन्दू श्रद्धालुओं को भी इस समस्या का सामना करना पड़ा था. तब स्थानीय लोगों और ट्रस्ट ने इन सब की मदद की थी. मुसलमानों ने भी लॉक डाउन में फंसे तबलीगी जमात के लोगों को घरों में आश्रय दिया था.
तब अखबारों ने तबलीगी जमात से फैलने वाले कोविड के आंकड़े प्रकाशित किये थे. टीवी पर रोज़ डिबेट हुआ था. जमात के बहाने भारत और दुनिया भर के मुसलमानों को कोसा गया था. उन्हें जाहिल कौम, कोरोना बम, धरती का बोझ, देश द्रोही और इंसानियत का दुश्मन आदि बताया गया था. जिसके मन में जो आया जमातियों पर इल्ज़ाम लगा दिया. नर्स से छेड़ छाड़, पुलिस वाले पर थूक, अस्पताल में गोश की मांग.. लेकिन आज तक एक भी आरोप साबित नहीं हुआ.
आज दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में 70 मुसलमानों के खिलाफ दर्ज 16 मुकदमों को ख़ारिज कर सभी को इन इल्जामों से बरी कर दिया है. इनपर आरोप था कि इन लोगों ने 190 विदेशी तबलीगी जमात के लोगों को शरण दिया था, जिससे कोरोना बढ़ा था. अभियोजन पक्ष इस मामले में कोई ठोस सबूत नहीं पेश कर सका.
इसी दौरान इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पोलिटिकल साइंस के एक नामचीन प्रोफेसर मोहम्मद शाहिद को 16 विदेशी जमात के लोगों सहित 29 लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया था. इलज़ाम था कि उन्होंने इंडोनेशियाई जमात के लोगों को शरण दिया था, जो सच भी था. प्रोफेसर मोहम्मद शाहिद के पढ़ाए हुए सैकड़ों लोग आज आईएस, आईपीएस या अन्य सरकारी सेवाओं में रहकर देश की सेवा कर रहे हैं, लेकिन उन्हें एक झटके में देश ने देशद्रोही करार दे दिया था.
प्रोफेसर मोहम्मद शाहिद सारे इल्जामों से बरी कर दिए गए. निजामुद्दीन मरकज के मौलाना साद VIP बनकर घूम रहे हैं. निजामुद्दीन मरकज़ आज भी देशी और विदेशी जमात मेम्बरों से गुलज़ार है.. जमाती मरने के बाद स्वर्ग सुधारने पर चर्चा कर बिरयानी खाकर मस्त हैं.
लेकिन राजू और नसीम चा के सवालों का मेरे पास आज भी कोई जवाब नहीं है..
राजू मेरे गाँव का बचपन में tution पढने जाने वाला दोस्त है. लॉकडाउन के बाद जब वो गाँव के स्थानीय बाज़ार योगी चौक पर एक दिन मिश्री दास के होटल पर चाय पीने और कचरी खाने गया तो मिश्री दास की बीवी निकसपुर वाली ने उसे होटल के बेंच से उठा दिया. चाय कचरी देने से भी मना कर दिया. निकसपुर वाली ने साफ़- साफ़ तोहमत लगा दिया कि मियां सब के कारण देश में कोरोना फैला है, और इतना आदमी मर रहा है, जबकि उस गाँव में हिन्दुओं से ज्यादा मुसलमान कोरोना में मरे थे.
भरे होटल से उठाए जाने पर राजू उस दिन अपमान का घूँट पीकर रह गया था.. उसका क्या कसूर था; वो जान नहीं पाया. इस घटना को आज पांच साल होने को है, राजू फिर कभी दुबारा मिश्री दास के होटल में कचरी खाने और चाय पीने नहीं गया.
फुग्गन चा, मोहल्ले के चाचा हैं. असली नाम उनका नसीम अहमद है. मोहल्ले के ही दूसरी छोर पर कहार टोली में राम प्रसाद सिंह उर्फ़ जग्गन मास्टर साहब का घर है.. नसीम चा और जग्गन मास्टर बचपन के दोस्त हैं.. दोनों ने एक साथ पढाई की थी. दोनों को एक साथ सरकारी स्कूल में 300 रुपए मासिक की टीचर की नौकरी लगी थी. जग्गन मास्टर साहब नौकरी करने लगे जबकि फुग्गन चा के पिता जुनैद आलम ने अपनी ज़मीन, खेती और सरकार की गुलामी का वास्ता देकर बेटे नसीम उर्फ़ फुग्गन से नौकरी छुड़वा दी. लेकिन राम प्रसाद सिंह और नसीम, दोनों की दोस्ती बनी रही.
मोहल्ले के लोग बताते हैं कि जब फुग्गन चाचा की पत्नी बीमार पड़ी तब राम प्रसाद मास्टर छुट्टी लेकर एक हफ्ते तक अस्पताल में डटे रहे. टस से मस नहीं हुए. जैसे कोई घर का सदस्य बीमार पड़ा हो. वहीं, जब मास्टर साहब की पत्नी बीमार हुईं, नसीम चा दस दिनों तक उनके तीमारदार बनकर खड़े रहे..
दोनों में ऐसी दोस्ती थी कि राम प्रसाद मास्टर साहब खाना अपने घर खाते थे और हाथ सुखाने नसीम चा के घर जाते थे. दोनों दोस्त रोज़ एक दूसरे से मिले बिना रह नहीं पाते थे. नसीम चा की कुछ ज़मीने भी मास्टर साहब ने ही लिखाई (खरीदी) थी. जब ज़रूरत हुआ पैसा देते गए, फिर एक दिन खेत उनके नाम कर दिया. आम की गाछी, शीशबन्नी, खजूर बन्नी, और बांसबाड़ी वाली नसीम चा की ज़मीन राम प्रसाद ने ही लिखवाई थी.
लोग बताते हैं कि सरकारी नौकरी होते हुए भी मास्टर साहब की औकाद नहीं थी कि इतनी ज़मीन लिखा ले, लेकिन यारी- दोस्ती में नसीम चाचा ने औने- पौने में अपनी अधिकांश ज़मीन अपने दोस्त मास्टर राम प्रसाद सिंह को बेच दी.
बाल-बच्चों की पढ़ाई- लिखाई हो, बेटे- बेटी का कोई बर्तुहार आ रहा हो, शादी करनी हो, घर बनाना हो, किस खेत में कौन सी फसल लगानी है, मोहल्ले में कौन- किसके खिलाफ साजिश रच रहा है, राम प्रसाद मास्टर साहब हर बात की चर्चा अपने मित्र नसीम से करते थे. मशविरा लेते थे.
लेकिन कोविड ने एक दिन सब कुछ बदल दिया. दोनों की दोस्ती में दरार पैदा कर दिया.. दरार ऐसे जो आज तक भर नहीं पाई..
रिटायरमेंट के बाद राम प्रसाद मास्टर साहब नसीम चाचा के घर के पास अपना खेत घूमने आते तो वहीँ जामुन के पेड़ के नीचे पड़ी खटिया पर सो जाते.. दिन ढलने के बाद शाम को घर जाते थे. लेकिन लॉकडाउन के बाद मास्टर साहब ने अपने मित्र के यहाँ आना अचानक बंद कर दिया.. दिन भर उनका समय टीवी देखने में गुज़र जाता था. लॉक डाउन में ही मास्टर साहेब का मंझला लड़का दीपक हैदराबाद से घर आ गया था. वो पेशे से सॉफ्टवेयर इंजिनियर है. घर से ही ऑफिस का काम करता था. उसने अपने पिता के लिए 52 इंच का एलसीडी टीवी लगा दिया था, जिसपर दिन भर कुछ न्यूज़ चैनल चलता रहता था. मास्टर राम प्रसाद दिन भर उसी टीवी में खोये रहते थे और अपना देश दुनिया का ज्ञान बढाते रहते थे.
जब एक दिन होटल पर मास्टर राम प्रसाद और नसीम चाचा दोनों की अचानक से मुलाकात हुई तो मास्टर साहब ने बताया कि ई पूरा कोविड महामारी का जिम्मेदार मुसलमान लोग है. तबलीगी जमात वालों ने कोविड फैलाया है. उसी की वजह से लोग मर रहे हैं. इसी वजह से वो अब घर पर ही रहते हैं. कहीं नहीं जाते हैं.
राम प्रसाद ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, " अब पहले वाला बात नहीं रहा.. समाज एकदम बदल गया है. लोग बदल गए हैं. देश पर बहुत बड़ा संकट मंडरा रहा है."
अपने दोस्त के इस बदले हुए तेवर, अंदाज़ और बहकी- बहकी बातों से नसीम चा अवाक थे! आखिर मास्टर ई मास्टर जग्गन को क्या हो गया है ? कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो अपने दोस्त को क्या जवाब दें? नसीम चा मन ही मन इस सोच में डूबे गए कि अगर कोविड फैलाने के लिए देश का मुसलमान जिमेदार है भी, तो इसमें मेरी क्या गलती है ?
अब छठ जैसे पर्व पर भी राम प्रसाद प्रसाद लेकर खुद नसीम के घर नहीं आते हैं.. किसी पोते- पोती के हाथों छठ का प्रसाद भेज देते हैं.
पिछली ईद में नसीम चा खुद भारी मन से ईद की सेवईयां लेकर अपने दोस्त राम प्रसाद के घर गए थे. रामप्रसाद की छोटकी बहु ने परदे की ओट से हाथ बढाकर नसीम चा से सेवइयां का झोला ले लिया था. पहले वो नसीम चा को देखती है, उनके पांव छू लेती थी.
नसीम चा ने जब उनकी बहु से राम प्रसाद के बारे में पूछा तो, उसने कहा कि बाबू जी खेत गए हैं, जबकि राम प्रसाद की चप्पल कोठरी के बाहर पड़ी हुई थी, और राम प्रसाद अंदर टीवी देख रहे थे. नसीम चा उस दिन अपने दोस्त का ये व्यवहार देखकर टूट गए थे! उन्हें यकीन नहीं हुआ कि ये वो ही राम प्रसाद है, जिसे वो 60- 65 वर्षों से जानते हैं!
आज पांच साल बीत चुके हैं. मास्टर साहब अपना खेत देखने अभी भी आते हैं, लेकिन अपने दोस्त के दरवाज़े पर नहीं आते हैं. नसीम चा आजकल दमे का मर्ज़ बढ़ने पर बिस्तर पर ही रहते हैं. साँसे फूलती है, कलेजा खींचता है तो लाठी लेकर मोहल्ले के दवाखाना तक जाते हैं.. यही उनकी दुनिया है... लेकिन उन्हें अपने दोस्त राम प्रसाद उर्फ़ जग्गन मास्टर का इंतजार आज भी है..
तबलीगी जमात के लोगों पर से कोविड फैलाने का इलज़ाम तो दूर हो गया है, लेकिन राजू, मिश्री दास, मास्टर राम प्रसाद और नसीम चाचा के दिलों में लगा ये दाग और दूरियां कब मिटेगी?
आपको अगर इन सवालों के जवाब मिल जाए तो हमसे ज़रूर शेयर कीजियेगा!
;- हुसैन ताबिश